सामुदायिक प्रार्थना /samudayik prarthna /भजन

।। श्री गुरुदेवाय नमः।।



Samudayik prarthna, samudayik prarthna lyrics
samudayik prarthna

है प्रार्थना गुरुदेव से ,यह स्वर्ग सम संसार हो ।। 


सामुदायिक प्रार्थना

सामुदायिक प्रार्थना का परिचय:-

सामुदायिक प्रार्थना राष्ट्र संत तुकडोजी जी महाराज द्वारा रचित वह सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है, जिसका भारत में ही नहीं अपितु विदेशो में भी आदर के साथ पठन और गायन किया जाता है | सामुदायिक प्रार्थना विश्व में पहली ऐसी एकल प्रार्थना है जिसमे लोक कल्याण की भावना है ,ईश्वर के प्रति के प्रति अगाध भक्ति है | जिसके पठन से गायन से ह्रदय में स्वत: ही ईश्वर भक्ति, करुना, दया, क्षमा, शांति,का अविर्भाव होने लगता है | और ह्रदय ईश्वर भक्ति के रस से भर जाता है | इस प्रार्थना के गायन से ईश्वर की अनुभति,समीपता का आभास होता है और का ह्रदय की मलिनता दूर होकर ह्रदय में सद्विचारो का प्रादुर्भाव होने लग जाता है , और आत्मबल की प्राप्ति होती है |  भारत के राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज एक मात्र ऐसे संत है जिनकी ख्याति विदेशो तक पहुंची | टुकड़ोजी जी महाराज सदा सदा के लिए इस संसार के लोगो के लिए अविश्मर्निय है ,और उनके द्वार रचित यह प्रार्थना युगों-युगों तक लोककल्यान करेगी | हम ऐसे ईश्वरभक्त, राष्ट्रभक्त राष्ट्रसंत तुकडोजी जी महाराज के सदा ऋणी रहेंगे |

प्रार्थना के प्रकार

प्रार्थना निम्न प्रकार की होती है । प्रार्थना के प्रकार:-

  • सकाम प्रार्थना :- प्रार्थना किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति और कामना के लिए की गई प्रार्थना सकाम प्रार्थना कहलाती है|
  • निष्काम प्रार्थना:- मुझे ईश्वर के अलावा कुछ नहीं चाहिए केवल ईश्वर ही चाहिए ऐसी भाव से की गई प्रार्थना निष्काम प्रार्थना कहलाती है|
  • आशावादी प्रार्थना:- आशावादी प्रार्थना, जो लोग यह समझते हैं कि मैं पाप कर्म करूंगा और ईश्वर मुझे माफ कर देंगे ऐसा भाव ईश्वर पर रखकर पाप कर्म करते हैं |और ऊपर -ऊपर प्रार्थना में कहते है ''मैं मूर्ख खल कामी'' ''तुम करुणा के सागर'' ऐसे शब्दों का उच्चारण कर यह समझते हैं कि ईश्वर माफ कर देगा किंतु ऐसा नहीं है जब बालक बार-बार एक ही गलती करें तो पिता उसे अवश्य दंड देते हैं वही ईश्वर भी करते हैं इस बात को ठीक ढंग से समझ लेना चाहिए |
  • सिफारिश प्रार्थना:- दूसरों के लिए निस्वार्थ भाव से की गई की गई प्रार्थना सिफारिश प्रार्थना कहलाती है|
  • सामुदायिक प्रार्थना:- इन समस्त प्रार्थना में सामुदायिक प्रार्थना सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसमें लोक कल्याण का भाव निहित है और यह सब के भले के लिए प्रार्थना की जाती

प्रार्थना के लाभ

  • प्रार्थना करने से हमारा मन शांति और आनंद प्राप्त करता है|
  • ईश्वर की कृपा और प्रेम सदा साथ रहती है जिससे जीवन सुखमय और आसान हो जाता है |जीवन संस्कार और धर्म युक्त होने से सफलता के द्वार खुल जाते है |
  • हमें जीवन के सार्थकता और ध्येय को समझने में मदद करता है।
  • प्रार्थना हमें सामर्थ्य प्रदान करता है कि हम अपने जीवन के सभी पहलुओं में समर्थ हैं, चाहे वो सांसारिक हों या आध्यात्मिक।
  • इसके साथ हीप्रार्थना हमें दूसरों के प्रति दया, सहानुभूति और प्रेम के भाव को बढ़ाता है।
आखिरकार, ईश्वर की प्रार्थना हमें हमारे जीवन का महत्व समझाती है और हमें संजीवनी शक्ति प्रदान करती है जो हमें अवस्थाओं और परिस्थितियों के साथ सामना करने में मदद करती है। इस प्रकार, ईश्वर की प्रार्थना हमारे जीवन को एक ऊँचाई और गहराई की दिशा में निरंतर बढ़ाने में मदद करती है।

सामुदायिक प्रार्थना

है प्रार्थना गुरुदेव से ,यह स्वर्ग सम संसार हो  
अति उच्चतम जीवन बने, परमार्थमय व्यवहार हो।।
ना हम रहे अपने लिए , हम को सभी से गर्ज है ।
गुरुदेव यह आशीष दो ,जो सोचने का फर्ज है।। ।।1।।

हम हो पुजारी तत्व के, गुरुदेव के आदेश के ।
सच प्रेम के नित नेम केसत धर्म के सत्कर्म के।।
हो चीड़ झूठी राह की , अन्याय की अभिमान की ।
सेवा करण को दास की ,परवाह नहीं हो जान की।।।।2।।

छोटे ना हो हम बुद्धि से, हो विश्वमय से ईशमय।
हो राममय अरू कृष्णमय ,जगदेवमय जगदीशमय।।
हर इंद्रियों पर ताव कर, हम वीर हो अति धीर हो।
उज्जवल रहे सर से सदा ,निज धर्म रथ खंभीर हो।।।।3।।

यह डर सभी जाता रहे ,मन बुद्धि का इस देह का।
निर्भय रहे हम कर्म में, पर्दा खुला स्नेह का।।
गाते रहे प्रभु नाम पर, प्रभुतत्व पाने के लिए।
हो ब्रह्मा विद्या का उदय ,यह जी तराने के लिए।।।।4।।

अति शुद्ध हो आचार से, तन मन हमारा सर्वदा।
अध्यात्म की शक्ति हमें, पल भी नहीं करदे जुदा।।
इस अमर आत्मा का हमें, हर श्वास भर में गम रहे।
गर मौत भी आ जाएगी, सुख दुख हम में सम रहे।।।।5।।

गुरुदेव तेरी अमर ज्योति, का हमें निज ज्ञान हो
 सत ज्ञान ही तू है सदा ,यह विश्व भर में ध्यान हो।।
तुझ में नहीं है पंथ भी, ना जात भी ना देश भी।
तू है निरामय एक रस है, व्याप्त भी अरू शेष भी।। ।।6।।

गुणधर्म दुनिया में बढ़े, हर जीव से कर्तव्य हो।
गंभीर हो सबके हृदय ,सच ज्ञान का वक्तव्य हो।।
यह दूर हो सब भावना ,हम नीच है अस्प्रश्य है।
हर जीव का हो शुद्ध मन, जब कर्म उनके स्प्रृश्य है।।।।7।।

हम भिन्न हो इस देह से, पर तत्व से सब एक है।
हो ज्ञान सब में एक ही, जिससे मनुज निःशक हो।।
टुकड़या कहे ऐसा अमर पद, प्राप्त हो संसार में।
छोड़े नहीं घर बार पर ,हो मस्त गुरु चरणार में।।

।। श्री गुरुदेव की जय ।।

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1 comment:

  1. please like and give me suggetion for this artical you are all time heartly welcome

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