मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
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मीरा बाई का अनन्य प्रेम और त्याग |
🙏 परिचय :
"मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई" मीरा बाई का वह अनुपम भजन है जिसमें वह प्रभु श्रीकृष्ण को ही अपना सर्वस्व मानकर समर्पण का सर्वोच्च उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। यह भजन केवल एक गीत नहीं, बल्कि भक्ति और प्रेम की चरम सीमा है। समाज, परिवार, कुल, मान-सम्मान – सब कुछ त्यागकर मीरा ने अपने इष्ट श्रीकृष्ण को पति, स्वामी और जीवन का ध्येय बना लिया। यह रचना भक्तिरस और आत्मसमर्पण की भावभूमि पर आधारित है।
📜जानकारी:
• भाषा: ब्रज भाषा मिश्रित सरल हिंदी
• शैली: भक्तिरस और प्रेमरस
• संबंधित देवता: श्रीकृष्ण (गिरधर गोपाल)
🌸भजन लिरिक्स 🌸
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।
।। 1 ।।
तात मात भ्रात बंधु, आपनो न कोई।
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई।।
।। 2 ।।
संतन ढिग बैठि-बैठि, लोक लाज खोई।
असुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम बेल बोई।।
।। 3 ।।
अब तो बेल फैल गई, आनंद फल होई।
भगत देख राजी हुई, जगत देख रोई।।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, हरि चरण चित्त होई।।
।। 4 ।।
💡 भावार्थ:
इस भजन में मीरा कहती हैं कि उनके लिए अब संसार में कोई नहीं है – केवल उनके गिरधर गोपाल ही सब कुछ हैं। उन्होंने कुल की मर्यादा, परिवार, मान-सम्मान सभी को त्याग दिया और प्रभु श्रीकृष्ण के चरणों में अपने प्राण अर्पित कर दिए।
उन्होंने अपने प्रेम को आँसुओं से सींचा और भक्ति की बेल को पोषित किया। अब जब यह भक्ति फलित हुई है, तो भक्त आनंदित हैं और संसार उनकी अवस्था देखकर स्तब्ध है।
यह भजन भक्त और भगवान के बीच अनन्य प्रेम और सम्पूर्ण समर्पण की दिव्य मिसाल है।
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